क्या हम तीसरे विश्वयुद्ध के तरफ बढ़ रहे है? पुरे दुनिया में छाई चिंता !!!

हम देख रहे है हाल के वर्षों में वैश्विक तनाव बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जिससे कई लोगों को यह सवाल उठने लगा है कि क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के करीब पहुंच रही है। रूस-यूक्रेन संघर्ष से लेकर एशिया-प्रशांत और मध्य पूर्व में बढ़ती शत्रुता तक, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सैन्य निर्माण, ये सब दिखा रहा है हम मिलकर रहने मै विफल हो रहे ह। 

यूक्रेन रूस जो २०२२ में युध्य शुरू हुआ था आगे जेक वो छेत्रिय मुद्दों से आगे बढ़ गया है।  नाटो देश ने यूक्रेन को हथियार और सहायता प्रदान की उस तरफ रूस भी ईरान नार्थ कोरिया के साथ अपने कूटनीति का विस्तार किय। ये सब देख कर शीत युध्य की यादे ताजा हो गई। 

अब रूस और यूक्रेन का युध्य समाप्त नहीं हुआ की चीन और ताइवान के तनाव बढ़ गय।  चीन ताइवान को अपना ही एक प्रान्त मानता है और उसने ताइवान के पास सैन्य गतिविधि बढ़ा दी दूसरी तरफ अमेरिका ने ताइवान की रक्षा करने का वचन दिया ह।  जिससे स्तिथि अत्यंत अस्थिर है अब समय ऐसा है की एक गलत कदम दुनिया की दो बड़ी देशो को सामने लेक खड़ा कर सकता है जिसका प्रभाव पुरे विश्व को पर हो सकता है।

मध्य पूर्व भी नए सिरे से अस्थिरता का सामना कर रहा है। २०२३ में इजराईल और हमास के बीच शुरू हुआ संघर्ष अब हिजबुल्लाह भी शामिल हो गया है और एक तरह से ईरान ने भी चेतावनी दे दी ह। अगर शांति की बात शुरू नहीं की गई तो तेल आपूर्ति और आर्थिक स्थिरता पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण से साउथ कोरिया और जापान में तनाव का माहौल और स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशो ने अपनी सैन्य उपस्तिथि बढाकर जवाब दे रहे है, जिसके युध्य का खतरा निरंतर बना हुआ ह। ये भू-राजनीतिक संकट आर्थिक अस्थिरता, साइबर युद्ध और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों के साथ-साथ सामने आ रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था दबाव में है, और बढ़ता राष्ट्रवाद और सैन्यीकरण कूटनीति और सहयोग की जगह ले रहा है। संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ संघर्षों को प्रभावी ढंग से रोकने या हल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

हालाँकि अभीतक तो दुनिया वैश्विक युध्य में नहीं है, परन्तू संकट तो बना हुआ ह। इतिहास बताता है की बड़े पैमाने पर युद्ध आर्थिक तनाव, विभाजित गठबंधन और आक्रमक सैनिक कार्यवाही छेत्रिय संघर्षों और कूटनीतिक विफलताओं से शुरू होते हैं।

अब कूटनीति को मजबूत करना होगा पहले से ज्यादा विश्वस्तरीय नेताओ को समझदारी से काम लेना होगा शांति वार्ता पर ज्यादा जोर देना होगा, युद्ध से बचने के कदम अभी से उठाने होंग। समय तो नदी की पानी की तरह बह रहा है – लेकिन भविष्य आज भी हमारे हाथो में है।

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